आदमी की खोज
एक बात पूछता हूँ प्रभु जी मैं बार बार
पैदा किया क्योंकि तूने धरती पे आदमी
काम करे उलटे सीधे कुछ न विचार करे
पीछे पछताए फिर रोता फिरे आदमी
सारी खुराफात करे संत बना ढोंग करे
कहाँ तक गिर जाए पता नहीं आदमी
नभ को भी नाप लिया माप लिया भूमि को भी
नाप नहीं पाया पर अपने को आदमी .
खोजता ही रहता हूँ इस भरी भीड़ में मैं
जाने कहाँ खो गया है आदमी का आदमी
अपने को देख लिया अपनों को देख लिया
सपने में देख लिया नहीं मिला आदमी
मंदिर में देख लिया मस्जिद में देख लिया
देखा गुरूद्वारे में भी नहीं मिला आदमी
कौन जाने कैसे कहे अपने भी नहीं रहे
आदमी से कटकर दूर हुआ आदमी
रचना काल ८ दिसंबर २००९
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1 comment:
One of my favourite kavita
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