Thursday, May 30, 2024

 पार्क की आल्हा जो मैंने अनुभव किया, आप मजा लें 

आल्हा

1

परथम सुमरू धरती मैया सब का बोझा सर पे ठाय

दूजे सुमरू आग और पानी जो जीने में सदा सहाय।

तीजे सुमरू वात गगन  को जो साँसों को रहा चलाय

मात पिता को सदा ही पूजूँ जो मुझको धरती पे लाय। 

उन गुरुओं को पल पल पूजूँ अटल ज्ञान का दिया जलाय

जाको लिख ड़ारों पोथिन में जो अब होता सदा सहाय

लुच्च लफंगों को भी सुमरू ना लिखने में उधम मचाय

उन दुष्टों को कैसे सुमरूँ अपने को जो समझें राय ।

ढ़म ढ़म करता ढ़ोल बजाऊँ गाता  फिरता आल्हा आय

खुल्लम खुल्ला बात मैं करता मतना रूठो मेरे भाय ।

कुछ जगबीती कुछ अगबीती करता हूँ मैं सच्ची बात

जीवन दर्शन रहा सदा से उठते गिरते भाव बलात ॥

2

इंद्र पुरम में इन्द्र नहीं है सदा घूमते आदम जात

स्वर्ण जयंती स्वर्ण हीन है सीधी सच्ची  करता  बात ।

स्वर्ण जयंती नाम पार्क का सुनलो सबही कान लगाय  

बच्चे लड़के बुड्ढे ठेरे घूमे सब ही इसके माय

सब खुश होके मौज मनाके वापिस अपने घर कू जाय

कुछ जोड़े से आयें यहा पे कुछ जोड़े बिन ही आ जाय ।

कुछ की हरकत ऐसी होती सब ही देख सनाका खाय  

कोई थूके कोई मूते कोई कुत्ते से मुतवाय ।

कोई पहले थूक बिलोवे अपने ही वो मुह के माय

कट्ठा करके वहीं बगावे लाज शरम ना उसको आय।

               3

सुंदर था ये कभी बगीचा इंद्रलोक से होड लगाय

बच्चे बूढ़े लड़का  लड़की सब ही आकर  मोद मनाय।

बैठ बेंच पे राहगीर भी पूरी अपनी थकन मिटाय

धूप छांव का अद्भुत संगम पूरा था जब इसके माय ।

भाग्य फूट गया पारक का अब  कोई ना रखवाला हाय

कुत्ते तक भी नाक सिकोड़ें अब तो यहाँ पे आके भाय ।

शोचालाय के सिंह द्वार पे  बदबू बदबू जी घबराय

चूहों के भी महल दुमहले खुदे हुए हैं चारों माय ॥

अब तो उनकी फौज घूमती कदम कदम पे भट्ट बनाय

अपने बिल के दरवाजे पे कोई मूंछ रहा फरकाय ।

कुछ तो  दौड़ रहे  सरपट ही एक दूजे से होड जाय

बाकी  खेल रहे आपस मे अपनी पूंछों को लहराय।

4

सुबह सुबह के किस्से यारों सुनलों सबही कान लगाय

कोई हो हो करता घूमे कोई माला जपता आय । 

कोई कूद्दे मेंढक तरिया आसमान से होड लगाय

कोई इतना शोर मचावे ढ़ोल मंजीरा तक घबराय। 

भारी नर नारी भी कूददें धम्म धम्म धरती हिल जाय

जैसे हाल्लण कोई आवे भगलों  सारे जान बचाय ।

बड़े थुकैया थूकने वाले थूक थूक के गंद मचाय

नाक नकैये  सिणक सिणक के रोज बिमारी हैं फैलाय।

 

एक चौधरी रस्सी कूदे लौंडे  देख उसे शरमाय

मार सुसाटा रस्सी घूमे  सब ही देख सनाका खाय। 

भौंके तब ही कल्लू कुत्ता संग में कुतिया  से भुंकवाय 

फिर घबरावे पूंछ हिलावे  कूँ कूँ करता मुंह से हाय।

               5 

एक चौधरी छैल छबीला कव्वों को वह रोज जिमाय

आओ आओ शोर मचाके  कव्वों को वह लेय बुलाय ।

काग भुशुंडी राम चरित का जो था बहुत बड़ा विद्वान

रामचरित के अंत भाग में लिक्खा उसका पूर बखान ॥

चपल चौधरी के मन भाया कौवे होते सदा महान 

कांव कांव की मीठी बोली देती मन को भी विश्राम ।

यूं तो कौवों को करते हैं मूरख लोग सदा बदनाम

आने को हैं आने वाला कहता कौवा छत पे आन ।

कोयल शातिर कौवा सीधा सुनलों सब ही कान लगाय

कोयल के वह बच्चे पाले अपने ही वो घर के माय ।             

   6 दिसंबर 2022 12;20 रात्री

6

क्वार महीना लगे साल का साथ कनागत भी लग जाय

घर घर जीमें पंडत जी भी द्वारे द्वारे सबके आय।

काग देवता काग भुशुंडि कांव कांव कर शोर मचाय

जैसे तुरही बजे नगर मैं जन जन के वह कान गुंजाय।

बैठ मुंडेरे काग दीखता सबके ही मन को भा जाय

शायद कोई पित्तर आया हाथ जोड़ सब सीश नवाय।

हलवा पूरी हाथ जोड़ के श्रद्धा से सब उसे जिमाय

ब्रह्मनाद सी कांव लगे तब अन्तर्मन को दे पिङ्घ्लाय।

7

ये तो बात खतम है यारों  अब पारक का सुनो हवाल

कोई भर दे खुशी गात मैं कोई कर दे रंज मलाल ।

सुबह सुबह ही आ जाते हैं लोग यहा पे धर्म धुरीण।

चूहों को रोटी देने मैं होते हैं वे पूर्ण प्रवीण ॥

बिल से चूहे पेड़ से गिल्लू दोनों लाते कुनबा साथ

मिंट लगावे ना खाने में सारे मिलकर मारे हाथ।

                   8

रंग बिरंगे बुड्ढे ठेरे सब आते पारक के माय

काढ़ के लत्ते नाच्चे कुददें लड़के देख देख शरमाय। 

लाज शरम कू त्यागे बुड्ढे प्रेमी जोड़े के ढिंग जाय

गाली देके नई पीढ़ी कू लुच्चापन अपना दिखलाय।

प्रेमी जोड़े प्यार करे हैं जाके बुड्ढे देक्खे झांक

कोई एक  हरामी बुड्ढा पास पहुँच के मारे आँख।

इक योगी भी योग करे था आस्सी का वो होके पार

दिल के मा इस्टंट पड़ा था फिर भी कसरत को तैयार

आसमान में टांग उठाके दोनों हाथ भूमि पर आय।

जैसे बंदर दौड़ लगावे पूरे पिछवाड़े को ठाय।

ढिल्ला निक्कर उस योगी का वो पूरा  उल्टा हो जाय

भगदड़ मच जाये पारक में सबही देख सनाका खाय ।

बुड्ढे तेरी अकल चरक है बुढ़ियों ने समझाया आन 

“मैं तो रंडवा टैम काटता तन की कसरत करता  आन ।

ना जाने कब काल बुलाले कसरत करता मैं दिन रात

मैं तो मर्जी का हूँ मालिक सीधी सच्ची करता बात।

जिसको भी इंकार लगे हैं क्यों देता वो  मुझपे ध्यान

जाके अपना काम देखतू  क्यों करती मुझको हैरान ॥“

इतना कह के उल्टा होग्या ऊपर ठाली दोनों टांग ,

मुंह ते बड़ बड़ करता डोले जैसे पीकर आया भांग ।

चार दिनों के बाद खबर थी सुनकर सारे थे हैरान

योगी ऊपर चला गया था काल देव का था फरमान ।

                  9

एक तिलंगा पारक आया जो था पूरा ही खल्वाट

जैसे करवा उल्टा होके जोहवै है पानी की बाट।

मूछे लंबी लंबी ऐसी बातें करें कान के माय

तनी हुई तलवारें जैसी पूरब पश्चिम को हैं जाय।

लंब नाक के बड़े छेद में बड़ी नपीरी भी बज जाय

बड़ा रूबैया रोब झाड़ता छोट बड़न का भेद न आय।

लंब तड़ंग औ छह फुटैया फर्जी उसकी सारी बात

कर्नल अपने को बतलावे रोब जमावे बातों बात ।

 

सब पे अपना रोब जमावे नेताओं की करता बात

सारे नेता मेरे चेल्ले काम करादूँ हाथों हाथ ॥

एक दिवस शर्मा के पीछे दौड़ पड़ा वह छुट्टा सांड

जान बचाई दौड़ लगाई पिच्छे  था वो भड़वा भांड ॥

संगी साथी शर्माजी के बैठ गए जब सगरे साथ

आया तब खल्वाट वहीं पर माफी मांगे जोड़े हाथ ॥

माफी देदो शर्माजी अब जूता मारो सिर पे आप

छोटा हूँ मैं माफ करो अब जितना चाहो मारो आप॥“

काढ़ के जूता शर्माजी का लेकर उसने अपने हाथ

फटा फट्ट मारा उसने फिर अपने सर पे अपने आप।

एक नाम के शर्माजी थे नाम पड़ा जब टीसी खान

भाषण देवे संतों जैसे वाणी के पूरे मलखान ।

अपने को ही मान दिलावे बाकी सारे भाड़ में जाय

अपनी बाणी लात गधे की बाकी कुत्तों की रह जाय ॥

दे दारू दे दारू कहते पेट हाथ से रहे खुजाय

अपनी अपनी बाते करते बाकी सबसे मतलब नाय

दीप सिंह से पक्की यारी जो है कभी उधर हो जाय

दो विरोधी ध्रुव हो जैसे इक दूजे को खींचे जाय ।